Latest Shayri collection 2020

Latest shayri collection

                  
तेरी जुल्फों के साये में सिमट जाने को दिल चाहता है

तेरी मदमस्त निगाहोंमें डूब जाने को दिल चाहता है

वैसे तो मुझे ज्यादा चलने की आदत नही,
पर जाने क्यू तेरा हाथ पकड़ दूर तक जाने को दिल चाहता है
Teri julphon ke saye me simat Jane ko dil chahata h.
Teri madmast nigahon me doob Jane ko dil chahata h.
Waise to mujhe jyada chalna pasand nhi,
Par Jane kyu tera hath pakad door tak Jane ko dil chahta h.

मैंने दिल तुमको दिया ये खता हमारी है
हमको जो तुमसे इश्क करने की बीमारी है
पर मुझसे ज्यादा तुमको वो लड़की प्यारी है
जो आज तुम्हारी और कल किसी और की सवारी है।
Maine dil tumko diya ye khata hamari h
Humko jo tumse ishq karne ki bimari h
Par mujhse jyada tumhe wo ladki pyari h
Jo aaj tumhari aur kal kisi aur ki sawari h

तेरी आँखों मे जब जब मैंने झाँकने की कोशिश की है
ये आँखे गहरी और भी गहरी होती गयी हैं
Teri aankhon me jab jab maine jhakne ki koshish ki h
Ye aankhe gahri aur bhi gahri hoti gayi h

 तेरे पायल की आवाज़ जब जब मेरे कानों में पड़ती है
तो लगता है जैसे की मेरी दुआ कबूल हुयी हो।
Tere payal ki aawaz jab jab mere kano me padti h
Tab tab lagta h ki jaise meri duwa kabool huyi ho

तू भले ही मुझसे प्यार न करती हो पर आके देख
 मेरे किताब के हर पन्ने आज भी सिर्फ तेरे नाम से भरे हुए है 
Tu bhale hi mujhse pyar n karti ho,
 par aake dekh mere kitab ke har panne sirf tere naam se bhare huye h

शाम को सुबह , सुबह को शाम लिखता हूँ,    ये 
जनम क्या वो जनम मैं हर जनम बस तेरे ही नाम लिखता हूं
Sham ko subah subah ko sham likhta hu,
Ye janam kya wo janam mai har janam bas tere hi naam likhta hu.

तेरी आंखों मे काजल ठीक वैसे ही लगता है
जैसे किसी ने चाँद की नज़र उतारी हो।
Teri aankhon me kajal theek waise hi lagta h
Jaise kisi ne chand ki nazar utari ho



तू हर रोज़ मेरे सपनों में आती है पर कम्बख्त जैसे ही तुझे बाहों में लेता हूं आँख मेरी खुल जाती है।
Tu har roz mere sapno me aati h par kambakht jaise hi  tujhe bahon me leta hu
Aankh meri khul jati h

जब जब ये पत्ते शाखों से अलग होते है
 तब तब तेरी बेवफाई का नजारा याद आता है।
Jab jab ye patte shakhon se alag hote h
Tab tab teri bewfayi ka nazara yaad aata h

तूने तो कसम खायी थी जिंदगी भर साथ चलने की
पर मेरे साथ दो कदम न चल सकी।
Tune to kasam khayi thi jindgi bhar sath chalne ki
Par mere sath do kadam n chal saki.


साँसे चलती है मगर बदन में हरकत नही होती 
खुद को मारकर ये जीना कैसा है 
ये शराब मुझे मीठी लग रही है 
ये बताओ जहर पीना कैसा है।
और इस सर्द रात में न जाने वो किसका जिस्म ओढ़ रही है
इस सर्दी के मौसम में मुझे पसीना कैसा है।
Saanse chalti hai magar badan me harkat nhi hoti
Khud ko markar ye jeena kaisa  hai
Ye sharab mujhe meethi lag rhi hai 
Ye batao jahar peena kaisa hai
Aur is sard raat me na jane wo kiska jism odh rhi hai
Is sardi ke mausam me mujhe paseena kaisa hai.




सब कुछ बताया जाए तो अच्छा रहेगा 
अगर कुछ न छुपाया जाए तो अच्छा रहेगा
और अदालत सजी है तेरे मोहल्ले में तो कोई गिला नही
गवाह मेरे मोहल्ले से भी बुलाये जाए तो अच्छा रहेगा।
और मुझपे तोहमतें लगी है तेरे गली से गुजरने की
रास्ता बाजार जाने का तेरा भी बताया जाए तो अच्छा रहेगा।
और उसके दिल से नही तिल से भी कत्ल ए आम हुए है
रकीब को दिल से पहले तिल से वाकिब करा दिया जाए तो अच्छा रहेगा।
Sab kuchh bataya jaye to achha rahega 
Agar kuchh n chhupaya jay to achha rahega
Aur adalat saji hai tere mohalle me to koi gila nhi 
 gawah mere mohalle se bhi bulaye jaye to achha rahega

Aur mujhpe tohmate lagi hai tere gali se guzarne ki
Rasta bazar jane ka tera bhi bataya jaye to achha rahega.

Aur uske dil se hi nhi uske til se bhi katla e aam huye hai.
Rakeeb ko dil se pahle til se wakif kara diya jaye to achha rahega


जो कभी जहन में तस्लीम था वो नज़रों तक से गिर गया है
और वो बता रहा है कि अपनी हद में रहो जो अपनी हद से गुज़र गया है।
और हिफाज़त दुश्मनों से तो कर लेते पर कोई अपना ही दुश्मनी पे उतर गया है।
और मेरे हक़ में जो दलीलें थी वो फिज़ूल है अब
मेरा गवाह गवाही देने से मुकर गया है।
और मेरी फांसी मुकर्रर होने पे वो मुकुरायी बहुत 
न जाने कौन सा नशा उसके सर चढ़ गया है
तेरे जाने के बाद वैसे भी न थी तमन्ना जीने की
अरे वो शख्स तो मेरे हक़ में फैसला कर गया है।
Jo kabhi jahan  me tasleem tha wo nazron tak se gir gaya h

 Aur wo bata raha hai ki apni had me rho jo apne had se guzar gya hai

Aur hifazat dushmano se to kar lete koi apna hi dushmani pe utar gya hai.

Aur mere haq me jo daleele thi fizool hai ab 
Mera gawah gawahi dene se mukar gya hai

Aur meri fansi mukarar hone pe wo muskurayi bahut n jane kaun sa nasha uske sar chadh gya hai
 Tere jane ke baad to jeene ki khwaish waise bhi n thi 
Are wo shakhs to mere haq me faisla kar gaya hai.

        एक हिन्दू लड़के और मुस्लिम लड़की के प्यार की सच्ची कहानी जिसने इस समाज को एक नयी सीख दी
Latest shayri collection

 

 अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा खत्म करने के बाद अरुण ने मुंबई यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया था। कॉलेज का पहला दिन था , अरुण  थोड़ा खुले मिजाज का लड़का था। अरुण ने आते ही कुछ दोस्त बना लिए थे, कॉलेज में आने के बाद हर लड़को का एक सपना होता है, की कोई लड़की उसकी फ्रेंड बने कोई तो हो जिससे वो अपने दिल की हर बात शेयर कर पाए।
और सच कहें तो यार हर किसी के लाइफ में एक शख्स तो ऐसा होना ही चाहिए जिससे वो खुल कर अपने दिल की बातें करे। उससे बातें करके अपनी खुशियों को दुगनी कर ले, और अपने दुःख आधे।
नया नया कॉलेज नए नए सपने, अरुण का भी दिल करता कि कोई उसके तरफ देखें, उससे बातें करे।
एक बार  अरुण कॉलेज की गेट से बाहर निकल रहा था तभी उसने देखा कि एक 5 साल का बच्चा गेट के बाहर खड़ा रो रहा है , उसके कपड़ें फटे हुए थे, देखने में अनाथ जान पड़ता था। कोई भी उस लड़के के तरफ ध्यान नही दे रहा था तभी एक लड़की कॉलेज के गेट से दौड़कर बाहर आती है, और अपना लंच उस बच्चे को दे देती है, और प्यार से उसे चुप कराती है, और अपने सहेलियों के साथ उसे कॉलेज कैंटीन में ले जाती है, वहाँ उसे खाना खिलाती है, उसे खूब प्यार करती है, अरुण ये सब देख रहा होता है, अरुण उस लड़की को देखें कि चाहता है पर उसका चेहरा साफ दिखाई नही देता क्योंकि उसने अपने चेहरे पर नकाब बांधी होती है। अरुण उसी ताक में लगा रहता है कि कब वो नकाब हटाये और वो उसे कब देख सके।
वो 5 साल का बच्चा बहुत खुश होकर उस लड़की के साथ खेलता है, तभी बच्चा खेल खेल में उस लड़की का नकाब पकड़ लेता है, और वो नकाब खुल जाता है, अरुण की निगाह उसके चाँद से चेहरे पर पड़ती है, अरुण को ऐसा लगता है मानों उसकी साँसे रुक गयी हो, दिल धक धक करने लगता है।
बस अब क्या था अरुण रोज कॉलेज में उसे फॉलो करने लगा जैसा कि normally हर लड़का करता है। अब बारी थी उसका नाम जानने की।
आखिर दोस्त कब काम आते, उसके दोस्तों ने आखिर पता लगा ही लिया , अरुण के दोस्त आके बोलते है कि अरुण उस लड़की का नाम पता चल गया है , आयशा नाम है उसका अरुण एक लंबी सी साँस लेता है, और मन ही मन उसका नाम दोहराता है और मुस्कुराता है।
अरुण रोज, जब भी आयशा आती उसे फॉलो करने लगता कैंटीन में,कॉलेज में, पार्क में, हर जगह। आयशा को भी लगने लगा था कि अरुण उसे फॉलो कर रहा है , एक दिन अरुण आयशा को फॉलो कर रहा था तभी आयशा ने पलटकर उससे पूछा कि आप मुझे क्यों फॉलो कर रहे हो मैं कई दिन से देख रही हूँ मैं जहाँ भी जाती हूँ आप मेरे पीछे आते हो। अरुण ने आयशा की आंखों में देखा और कहा कि मेरा नाम अरुण है, मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ ,और इसलिए मैं तुम्हे रोज फॉलो करता हूँ, आयशा ने कहा देखो ये नही हो सकता, हम आपसे प्यार नही कर सकते। अरुण ने पूछा क्यों क्या मैं तुम्हें पसन्द नहीं हूँ, आयशा ने कहा नही ऐसी बात नही है, अरुण ने फिर पूछा तो आखिर तुम्हें मेरा प्यार क्यों नही कबूल है, आयशा ने कहा कि दरअसल आप हिन्दू हो और मैं मुसलमान, हम दोनों के रिश्ते को कोई accept नही करेगा , अरुण ने कहा मुझे पहले से पता है कि तुम मुसलमान हो फिर मैं तुमसे प्यार करता हूँ, अरुण कहता है, कि जब भी मैं तुम्हें देखता हूँ एक सुकून सा मिलता है, जब भी तुम मेरे आस पास होती हो, तो मैं बहुत खुश रहता हूँ, इसलिए तुम हिन्दू हो या मुसलमान इससे कोई फर्क नही पड़ता, मैं अब भी तुमसे प्यार करता हूँ। और हमेशा करता रहूँगा। आयशा बिना कुछ कहे वहाँ से चली जाती है ।
दिन पे दिन बीतते जाते है, और ये सिलसिला जारी रहता है। एक दिन आयशा अपनी माँ और अपने बड़े भाई के साथ दरगाह गयी होती है, अरुण आयशा को देख लेता है और उसका पीछा करने लगता है, वो जहाँ जहाँ जाती है अरुण भी वहाँ वहाँ जाता है, तभी अरुण आयशा का हाथ पकड़ लेता है और उसे रुकने को कहता है, आयशा मना करती है, और अपना हाथ छुड़ाती है, तभी अचानक से उसकी माँ और उसका बड़ा भाई इन दोनों को देख लेते है, और वहाँ पहुँच कर उसका भाई अरुण को बहुत मारता है, आयशा अरुण से कहती है तुम यहाँ से चले जाओ और वापस मेरे पीछे कभी मत आना। अरुण चुप चाप बिना कुछ बोले चला जाता है।
अगले दिन आयशा कॉलेज में आती है, अरुण उसको दिखाई नही देता । आयशा उसे लाइब्रेरी में देखती है अरुण वहाँ भी दिखाई नही देता, आयशा कैंटीन में ढूढती है अरुण वहाँ भी नही मिलता, आयशा सोचती है कि मुझे हो क्या गया है जब तक वो मेरे पीछे-पीछे आता था तब मैं उसे खुद से दूर रहने को कहती थी और आज जब वो मुझे दिखाई नही दे रहा है, तब मेरा दिल क्यों बार बार उसके बारे में सोच रहा है, मेरी आँखें आखिर क्यों उसको देखने के लिए बेताब हो रही है।
ऐसा कहते हुए आयशा की आँखों मे आँसू आ जाते है, वो खुद को रोक नही पाती है, और रोने लगती है। आयशा अरुण के दोस्तों के पास जाती है और पूछती है अरुण कहाँ है उसके दोस्त बताते है कि वो कॉलेज पार्क में है, आयशा तुरंत दौड़ के जाती है और देखती है कि अरुण कॉलेज के पार्क में एक पेड़ के नीचे अकेले बैठा होता है, आयशा दौड़ के उसके पास पहुंचती है और आयशा के आँखों मे आँसू रहते है अरुण आयशा को देख के हैरान हो जाता है, इससे पहले की अरुण कुछ कहता आयशा दौड़ कर अरुण के गले लग जाती है।
अरुण के आँखों मे भी आँसू आ जाते है।
अब क्या था अब तो दोनों एक दूसरे को देखे बिना एक दिन भी नही रह पाते थे दोनों को एक दूसरे की आदत सी हो गयी थी ।
एक दिन आयशा और  अरुण कॉलेज के पार्क में बैठ कर एक दूसरे से बातें कर रहे थे , तभी अचानक से आयशा का भाई वहाँ आ जाता है , और आयशा को जबरदस्ती वहाँ से लेके चला जाता है, और घर पर आके आयशा की माँ को सारी बात बता देता है , आयशा की माँ आयशा को बहुत डांटती है, आयशा रोने लगती है वो कहती है माँ मैं अरुण से बहुत प्यार करती हूँ, मैं उसके बिना नही जी सकती । आयशा की माँ उसे समझाती है कि वो हिन्दू है और हम मुसलमान है , तुम दोनों का रिश्ता नही हो सकता। पर आयशा के जिद्द करने की वजह से  वो लोग उसका रिश्ता कही और तय कर देते है, इधर आयशा की शादी की खबर जब अरुण को मिलती है ।
तो अरुण परेशान हो जाता है , और मन ही मन सोचता है कि चाहे जो हो जाये लेकिन आयशा को किसी और कि नही होने देगा। और वो रातों रात आयशा को उसके घर से भगा ले जाता है। आयशा का भाई उन दोनों को ढूढ़ने लगता है, इधर अरुण आयशा को लेकर अपने घर आ जाता है, अरुण के पिता को जब ये पता चलता है कि अरुण किसी लड़की को भगा ले आया है और वो मुसलमान हैं तो वो गुस्सा हो जाते है , और शादी के लिए साफ मना कर देते है, पर अरुण की माँ किसी तरह परिस्थितियों को संभालती है, और अरुण के पापा को मना लेती है।
अरुण के पापा कहते है ठीक है शादी के लिए मैं तैयार हूँ पर इस लड़की को मुसलमान से हिन्दू धर्म अपनाना होगा, और इसे मांस मछली छोड़ना होगा। अरुण को अपने पापा की यह बात पसंद नही आयी, अरुण ने अपने पापा से कहा की पापा जब आयशा अपना सब कुछ मेरे लिए छोड़ के यहाँ मेरे पास चली आयी तो हमे उसके साथ ऐसा नही करना चाहिए वो जैसी है मुझे पसंद है, उसे खुद को बदलने की कोई जरूरत नहीं है, वो कहते है न कि अगर आप किसी से प्यार करो तो वो जैसा है वैसे ही उससे प्यार करो किसी को अगर बदल के प्यार करते हो तो वो प्यार नही धोखा है,
अरुण की ये बात सुनके उसके पापा का दिल भर आया उन्होंने अरुण को गले लगाया और अरुण और आयशा की शादी करवाके उन्हें आशीर्वाद दिया। इस तरह अरुण और आयशा हमेशा के लिए दो जिस्म एक जान हो गए।
आपको मेरी ये कहानी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताइयेगा। धन्यवाद

 

Sharing Is Caring:

Leave a Comment